कोरोना संकट के बीच आर्थिक और सामाजिक रूप से सुरक्षित माता-पिता को बहुत चिंता अपने बच्चों के लिए हो रही है. यह चिंता उनके स्वास्थ्य से हटकर उनकी पढ़ाई-लिखाई को लेकर है. स्कूल से जिस तरह की अनचाही, बिन मांगी छुट्टी मिल गई है, उससे बच्चे तो खुश भी दिख रहे हैं लेकिन माता-पिता खासे परेशान नजर आ रहे हैं.
उनको लग रहा है कि बच्चों का पढ़ाई का बोझ अचानक से बढ़ जाएगा. उनकी बाकी परीक्षाओं का क्या होगा. बोर्ड परीक्षा से जुड़ी दूसरी परीक्षाओं का क्या होगा. बच्चों का फोकस पढ़ाई से हट जाएगा तो क्या होगा. ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनका डर, कोरोना के डर के बीच परेशान कर रहा है.
बच्चों की परीक्षाओं का क्या होगा. वह पिछड़ जाएंगे. उनका भविष्य अधर में लटक जाएगा. यह सारे सवाल मन के गढ़े हुए हैं. इनका ठोस अस्तित्व नहीं है. यह इसलिए भी आ रहे हैं क्योंकि हम रचनात्मक और सृजनात्मक रूप से खाली होते जा रहे हैं. जब पूरी दुनिया संकट में है, दुनिया तो छोड़िए आपका समाज और परिवार संकट में हैं, उस समय इस तरह के सवाल में लिपटे रहने का अर्थ यह हुआ कि हम मनुष्य और मनुष्यता दोनों से ही बहुत आगे निकल गए हैं. हम इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि यह संकट कितना गहरा होने जा रहा है. इस इस वक्त बच्चों को क्या-क्या सिखाया जा सकता है. अगर इस पर थोड़ा सा भी ध्यान दिया जाए तो यह बच्चों के लिए स्वयं, पर्यावरण, समाज और रिश्तों को जानने का सबसे अच्छा समय है.
बच्चों को इसी दुनिया में बड़ा होना है. वह बड़े होकर किसी दूसरी दुनिया में जाकर नहीं रहने वाले. खासकर तब, जब विकसित समझे जाने वाले समाज खुद अपने संकटों से नहीं लड़ पा रहे हैं. जो प्रकृति और मनुष्य से जितने अधिक दूर होते जाएंगे उनका संकट उतना ही बढ़ता जाएगा. कोरोना का संकट किसी एक देश का संकट नहीं है. यह किसी एक देश से उपजा तो हो सकता है लेकिन यह असल में सबकी बराबरी से हिस्सेदारी से ही फैला है.
हिंसा इस वक्त की सबसे बड़ी चिंता होनी चाहिए. हम बच्चों को जिस तरह पाल पोस कर बड़ा कर रहे हैं, सच पूछिए तो उनके हिंसक बनने में हमारी सबसे बड़ी भूमिका है. बच्चों को किसी भी कीमत पर सफल बनाने की हमारी ज़िद क्रूर और हिंसक बनाने की ओर पहला कदम है. क्रूर और हिंसक मन के साथ वैसे ही दुनिया बनाई जा सकती है, जैसी कोरोना बना रहा है.
मूल्य रहित शिक्षा बच्चों को मनुष्यता से दूर ले जाती है. थोड़ा पीछे जाइए जब आप छोटे बच्चे थे. नैतिक शिक्षा आपकी पढ़ाई का जरूरी हिस्सा था. जरूरी यह नहीं कि नैतिक शिक्षा में कितने नंबर आते थे, बल्कि उससे कहीं अधिक अहम है कि उसका भाव आपके मन में रहता था. वह समाज और मनुष्य को एक साथ जोड़े रखने में सूत्रधार की भूमिका निभाता था. क्या आप ऐसी दुनिया का हिस्सा बनना पसंद करेंगे, जिसमें कोई नैतिक बोध न हो. मनुष्य को केवल स्वतंत्रता महान नहीं बनाती. उसे स्वतंत्र होने के साथ नैतिक, प्रेम पूर्ण, मूल्यपरक भी होना होता है. नैतिकता, प्रेम के बिना अच्छे से अच्छी व्यवस्था नष्ट हो जाती है. कोरोना से उपजा संकट दुनिया में कम होती नैतिकता, मूल्यपरक और प्रेम की कमी से उपजा संकट है. इसलिए जितना संभव हो बच्चों को जिंदगी से जोड़िए. उन्हें अपने निर्णय लेने और अधिकतम मनुष्य बने रहने में सहयोग कीजिए. उस पौधे की तरह उनकी देखभाल करिए जिसे खाद और पानी तो आप देते रहते हैं, लेकिन हर दिन यह नहीं बताते कैसे बड़ा होना है. पौधे को जरूरत से अधिक धूप से बचाने की कोशिश उसे कमजोर बनाती है. परवरिश में हमेशा यह ध्यान रखे जाने वाली बात है.
बच्चों के इस अवकाश का उपयोग उन्हें साहित्य, संवाद और कहानियों की ओर ले जाने में किया जा सकता है. अपने बचपन और उन यादों से कनेक्ट करने में किया जा सकता है जिनसे आपको मुश्किलों से लड़ने में मदद मिलती है. बच्चों का इन दिनों जितना भी साथ मिल रहा है, उसे वरदान की तरह लेने से हम दुनिया को उस प्रेम और अहिंसा के कुछ निकट ले जा सकते हैं जिससे वह बहुत दूर निकल गई है.