जीवनसंवाद : सब साथ-साथ बचेंगे

जब-जब हम पर कोरोना जैसे संकट आते हैं, अलग-अलग टुकड़ों में बंटे समाज धीरे धीरे पास आने लगते हैं. भारतीय समाज इतना बहुरंगी, विविधतापूर्ण है कि उसे पूरी तरह समझ पाना असंभव है. हम सब समाज को बहुत थोड़ा जान पाते हैं अपने जीवनकाल में. जो जैसा जान पाता है, उसकी समझ वैसी ही बनती जाती है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हमारे बचपन का होता है. इसीलिए बार-बार कहा जाता है कि बचपन को जितना संभव हो हिंसा, कठोरता और कुंठा से बचाया जाए.

करोना का संकट हम सबके जीवन काल में अब तक आया सबसे बड़ा संकट है. यहां हम सब में आपके और हमारे सभी के माता-पिता और उनके माता-पिता को शामिल किया जा सकता है. इस संबंध में जितने भी बुजुर्गों से अब तक बात हुई सभी ने एक स्वर में कहा, कभी देश में रेलों पर ऐसी पाबंदी नहीं देखी. रेल कभी रुकती नहीं, जब वह रुक जाए तो मानो कुछ बड़ा अनिष्ट घटने को है.


कोरोना इतनी तरह के संकट लेकर आया है कि उससे किसी एक समाज, सेक्टर और शहर का अकेले मुकाबला कर पाना संभव नहीं. कोरोना से उपजे संकट बहुत बड़े हैं. एक- एक मनुष्य की समाज को जरूरत होगी. किसी प्यासे को पानी पिलाने से लेकर, किसी के लिए एक समय के भोजन की व्यवस्था से लेकर, पशु और परिंदों के लिए पानी, भोजन के इंतजाम सबको मिलकर करने होंगे.



देखिए लोग कैसे-कैसे छोटे-छोटे कदमों से दूसरों की मदद कर रहे हैं. दिल्ली और गाजियाबाद से सटे इलाकों में झुग्गी बस्तियों और भोजन की पास में बैठे लोगों के लिए समाज आगे आ रहा है. दिल्ली/गाजियाबाद की बस्तियों में घरेलू सहायकों के लिए भोजन की व्यवस्था में लोग बहुत शांति से अपनी भूमिका निभा रहे हैं. मेरे कुछ मित्र खामोशी से धीमे-धीमे राहत कार्यों में लगे हुए हैं, अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए. कोई दिनभर इसलिए परेशान है कि उसके घरेलू सहायक के यहां भोजन पहुंचा कि नहीं. तो कोई दस घंटे की नौकरी के बाद सड़कों पर मास्क पहने पुलिस वालों के भोजन के लिए इंतजाम कर रहा है.



 







 


#जीवनसंवाद : सब साथ-साथ बचेंगे!


 

 


 



#जीवनसंवाद : सब साथ-साथ बचेंगे!
जीवन संवाद

 




JeevanSamvad: अगर आपके बच्चे आपको दूसरों की मदद करते देख रहे हैं तो यकीन मानिए यह उनको सच्चे अर्थों में शिक्षित करना है. इसलिए मदद से पीछे मत हटाइए भले ही वह किसी भी रूप में हो. कितनी ही छोटी क्यों न हो!




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जब-जब हम पर कोरोना जैसे संकट आते हैं, अलग-अलग टुकड़ों में बंटे समाज धीरे धीरे पास आने लगते हैं. भारतीय समाज इतना बहुरंगी, विविधतापूर्ण है कि उसे पूरी तरह समझ पाना असंभव है. हम सब समाज को बहुत थोड़ा जान पाते हैं अपने जीवनकाल में. जो जैसा जान पाता है, उसकी समझ वैसी ही बनती जाती है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हमारे बचपन का होता है. इसीलिए बार-बार कहा जाता है कि बचपन को जितना संभव हो हिंसा, कठोरता और कुंठा से बचाया जाए.

करोना का संकट हम सबके जीवन काल में अब तक आया सबसे बड़ा संकट है. यहां हम सब में आपके और हमारे सभी के माता-पिता और उनके माता-पिता को शामिल किया जा सकता है. इस संबंध में जितने भी बुजुर्गों से अब तक बात हुई सभी ने एक स्वर में कहा, कभी देश में रेलों पर ऐसी पाबंदी नहीं देखी. रेल कभी रुकती नहीं, जब वह रुक जाए तो मानो कुछ बड़ा अनिष्ट घटने को है.


कोरोना इतनी तरह के संकट लेकर आया है कि उससे किसी एक समाज, सेक्टर और शहर का अकेले मुकाबला कर पाना संभव नहीं. कोरोना से उपजे संकट बहुत बड़े हैं. एक- एक मनुष्य की समाज को जरूरत होगी. किसी प्यासे को पानी पिलाने से लेकर, किसी के लिए एक समय के भोजन की व्यवस्था से लेकर, पशु और परिंदों के लिए पानी, भोजन के इंतजाम सबको मिलकर करने होंगे.



देखिए लोग कैसे-कैसे छोटे-छोटे कदमों से दूसरों की मदद कर रहे हैं. दिल्ली और गाजियाबाद से सटे इलाकों में झुग्गी बस्तियों और भोजन की पास में बैठे लोगों के लिए समाज आगे आ रहा है. दिल्ली/गाजियाबाद की बस्तियों में घरेलू सहायकों के लिए भोजन की व्यवस्था में लोग बहुत शांति से अपनी भूमिका निभा रहे हैं. मेरे कुछ मित्र खामोशी से धीमे-धीमे राहत कार्यों में लगे हुए हैं, अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए. कोई दिनभर इसलिए परेशान है कि उसके घरेलू सहायक के यहां भोजन पहुंचा कि नहीं. तो कोई दस घंटे की नौकरी के बाद सड़कों पर मास्क पहने पुलिस वालों के भोजन के लिए इंतजाम कर रहा है.







दूसरी ओर बेरोजगार हुए दिहाड़ी मजदूरों के परिवारों के लिए अनेक स्वयंसेवी संगठन सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं. दिल्ली में एक व्यक्ति पशुओं की देखभाल में अपनी सारी पूंजी लगाकर जुटे हुए हैं. बाहर से देखने में यह काम छोटे-छोटे लगते हैं, लेकिन जिस एक व्यक्ति को मदद पहुंचती है उसके लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है. इसलिए, जिससे जितना संभव हो किया जाना चाहिए. इससे मन में अपराध बहुत कम होता है, जो भूखे हैं उनके रहते जो भरपेट खाते हैं. वह भरपेट भोजन संभव है अधिक शांति और सुकून के साथ आंतों में पचेगा.


अगर आपके बच्चे आपको दूसरों की मदद करते देख रहे हैं तो यकीन मानिए यह उनको सच्चे अर्थों में शिक्षित करना है. इसलिए मदद से पीछे मत हटाइए भले ही वह किसी भी रूप में हो. कितनी ही छोटी क्यों न हो!



हम दूसरों की जिंदगी में बहुत छोटी -छोटी चीजों से अंतर पैदा कर सकते हैं. कोरोना संकट के बीच बहुत से लोग बेरोजगार हो गए हैं, घर बैठ गए हैं. इनमें से जिनका रोजगार आप से जुड़ा हुआ है, जैसे आप के घरेलू सहायक, कार की सफाई करने वाले, ड्राइवर, अखबार बांटने वाले हॉकर कपड़े की धुलाई और इस्त्री करने वाले. यह सब मजबूरी में घर बैठे हैं. बहुत से लोगों को हमने ही कहा है, घर बैठिए. मेरा विनम्र निवेदन है कि जिस तरह आपको आपकी कंपनी कुछ दिन ऑफिस नहीं आने के बाद भी पूरे पैसे दे देती है/दे रही है. उसी तरह सहज मानवता के नाते इनके पैसे मत काटिएगा. यह बात उनको अभी से बताते रहिए ताकि वह किसी तरह बिना तनाव के विपरीत स्थितियों का सामना कर सकें. संभव हो तो उनके खातों में कुछ पैसे भी भिजवा दीजिए.

आपमें से बहुत से लोग यह काम पहले से ही कर रहे हैं. उन सभी को मेरा सलाम. जो किसी कारणवश अब तक नहीं कर रहे थे उनको यह कोशिश करनी चाहिए. इस संकट की घड़ी में हम सब मिलकर ही एक दूसरे को बचा सकते हैं. हम सब बचेंगे तो साथ साथ ही. एक आदमी, शहर, समाज का बचना मुश्किल है. इसलिए जैसे भी हो एक दूसरे का साथ दीजिए.